सजायाफ्ता नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने की पाबंदी वाली याचिका का केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में उस याचिका का विरोध किया है जिसमें आपराधिक मामले में दोषी ठहराए गए नेताओं(मौजूदा सांसद व विधायक सहित) के आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने की गुहार की गई है.
कानून मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है की पब्लिक सर्वेंट और राजनेताओं में कोई अंतर नहीं है लेकिन जनप्रतिनिधियों के सर्विस नियम में इस तरह का कोई नियम नहीं है. मंत्रालय ने अपना जवाब भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा संशोधित आवेदन पर दिया है.
आवेदन में कहा गया था कि दोषी राजनेताओं पर भी पब्लिक सर्वेंट की तरह ही नियम लागू होना चाहिए. आवेदन में कहा गया था कि जिस तरह से अपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद पब्लिक सर्वेंट की सेवा आजीवन खत्म कर दी जाती है उसी तरह का नियम जनप्रतिनिधियों पर भी लागू होना चाहिए.
हलफनामे में कहा गया है कि इस बिंदु पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत सरकार के मामले में विचार किया जा चुका है. उस मामले में जनप्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराए जाने के आधार तय किए गए थे.
मौजूदा नियम के तहत अपराधिक मामलों में दो वर्ष या उससे अधिक की सजा होने पर सजा की अवधि पूरी होने के छह वर्ष तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी है.