अमित शाह ने खुद 35 रैलियां कीं। ताजा रुझानों में भाजपा को पिछले चुनावों की तुलना में थोड़ा फायदा होते भी दिख रहा है। इसके बावजूद दिल्ली का तख्त अभी भी उसकी पहुंच से दूर है। दिल्ली की जनता फिर से अरविंद केजरीवाल पर भरोसा जताते दिख रही है।
पिछले दो लोकसभा चुनावों और कई विधानसभा चुनावों में मोदी मैजिक चलने के बावजूद पिछले 20 साल से भाजपा दिल्ली की सत्ता में वापसी नहीं कर पा रही है। इस बार जीतने के लिए आक्रामक चुनाव अभियान शुरू किया गया था। पार्टी के शीर्ष नेताओं ने कई रैलियों को संबोधित किया और रोड शो और डोर-टू-डोर अभियान चलाए। भाजपा ने 200 सांसदों, कई मुख्यमंत्रियों और लगभग सभी केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव प्रचार में शामिल किया।
1956 के बाद 1993 में दिल्ली में फिर से विधानसभा चुनाव हुए, तो भाजपा ने अपना परचम लहराते हुए सरकार बना ली। दिवंगत भाजपा नेता मदन लाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। 1996 में उनकी जगह साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया। 2 साल के बाद दिल्ली की कमान 51 दिनों के लिए सुषमा स्वराज को मिल गई।
मगर 1998 में शीला दीक्षित ने कांग्रेस को सत्ता में वापसी दिलाई और लगातार तीन बार सरकार बनाई। इसके बाद दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने भाजपा को झटका दे दिया। 2013 में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 34 सीटें जीतीं, लेकिन सरकार बनाने के आंकड़े से दो सीट पीछे रह गई। बाद में आप और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बना ली।
इस बार भाजपा ने दिल्ली के 70 निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी के प्रचार के लिए 350 से अधिक नेताओं और उम्मीदवारों का इस्तेमाल किया। भाजपा शासित राज्यों के अधिकांश मुख्यमंत्री और एनडीए के सदस्यों ने भाजपा के प्रचार के लिए हाथ मिलाया।