किसान आंदोलन में महिलाएं महज रोटी नहीं बना रहीं बल्कि निभा रही हैं अहम भूमिका

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दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में महिलाएं भी दिख रही हैं.लेकिन आपको ये जानकार ताज्जुब होगा कि इस किसान आंदोलन में महिलाएं महज रोटी बनाने नहीं आई हैं बल्कि कई महिलाओं की इस आंदोलन में अहम भूमिका है. 

दिल्ली रोहतक राजमार्ग पर हजारों की तादाद में किसान और उनकी ट्रैक्टर ट्रालियां खड़ी  हैं लेकिन पंजाब के बठिंडा से आई हरिंदर बिंद सभा स्थल की ओर जा रही हैं और फिर राजमार्ग पर चल रहे विरोध प्रदर्शन का हिस्सा हो जाती हैं. हरिंदर के पिता मेघराज भक्तुआना का 30 साल पहले खालिस्तानी समर्थकों ने कत्ल कर दिया था. अब वो किसान यूनियन उगरांवा की सचिव हैं और पंजाब की महिलाओं को इस आंदोलन से जोड़ने में अहम भूमिका निभा रही हैं.

हरिंदर बिंद ने कहा, ‘पिता की हत्या खालिस्तानियों ने कर दी थी तभी सोच लिया कि मजदूर किसानों के बीच काम करूंगी अब मैं गांव गांव जाकर महिलाओं को जागरूक करती हूं.

रोहतक-दिल्ली राजमार्ग से करीब चार किलोमीटर दूर टिकरी बार्डर पर भी विरोध सभा चल रही है. यहां मंच के ठीक बगल में बैठी जसबीर कौर नत हैं. क्लर्क के पद से रिटायर होने के बाद किसान यूनियन से जुड़ गई. वो खुद टिकरी बार्डर पर हैं और बेटा सिंधु बार्डर पर धरना दे रहा है. यहां बैठकर आंदोलन की फंडिंग से लेकर मंच पर किसको बोलना है ये जसबीर कौर नत ही तय करती हैं.

जसबीर कौर नत ने कहा, ‘मैं 1997 से भारतीय किसान यूनियन के साथ काम कर रही हूं. यहां मुझे कोई दिक्कत नहीं है. सब मिलाकर फंडिंग से लेकर मंच संचालन तक करती हूं. सारे किसान भाइयों का बहुत सहयोग मिलता है.’ लेकिन इस किसान आंदोलन में गुरमेल कौर जैसी कई बुजुर्ग महिलाएं भी मौजूद हैं जो आंदोलन के लिए इस ठंड में गांव छोड़कर दिल्ली बार्डर पर आ जमीं हैं. इनका किसी संगठन से ज्यादा सरोकार नहीं है. बस गांव से अपने जत्थे के साथ आंदोलन में शामिल लोगों का हौसला बढ़ाने आई हैं.

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